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वरुण ग्रोवर द्वारा निर्देशित ‘ऑल इंडिया रैंक’ का हुआ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ रॉटरडैम में वर्ल्ड प्रिमियर


मैचबॉक्स शॉट्स की अगली ‘ऑल इंडिया रैंक’ है। हाल में इस फिल्म ने इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ रॉटरडैम (आईएफएफआर) में अपने ग्लोबल प्रीमियर के साथ दुनिया को अपना दीवाना बना लिया। बता दें इस प्रोडक्शन हाउस ने ‘मोनिका ओह माय डार्लिंग’ और ‘थ्री ऑफ अस’ जैसी क्रिटिकली अक्लेम्ड और सफल फिल्में दी है। अब इस प्रोडक्शन हाउस ने ‘ऑल इंडिया रैंक’ के वर्ल्ड प्रिमियर के साथ दुनियाभर में सभी के दिलों को छुआ है। वहीं फिल्म का निर्देशन वरुण ग्रोवर ने किया हैं जो एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता गीतकार, पटकथा लेखक और एक लोकप्रिय स्टैंड-अप कॉमेडियन भी हैं।

‘ऑल इंडिया रैंक’ एक कमिंग ऑफ एज ड्रामा है जिसमें बोधिसत्व शर्मा, समता सुदीक्षा, शशि भूषण, गीता अग्रवाल और शीबा चड्ढा प्रमुख भूमिकाओं में हैं। फिल्म को क्लॉक टावर पिक्चर्स ने को-प्रोड्यूस किया है।

‘ऑल इंडिया रैंक’ को आईएफएफआर में फेस्टिवल की क्लोजिंग फिल्म के रूप में दिखाया गया था। वहीं 5 फरवरी को हुए फिल्म के प्रीमियर में निर्देशक वरुण ग्रोवर, निर्माता संजय राउत्रे, डीओपी अर्चना घांग्रेकर के साथ फिल्म के लीड एक्टर्स नजर आए।

इस मौके पर *निर्माता संजय राउत्रे ने कहा*, “आईएफएफआर 2023 में एआईआर को दर्शकों की जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली। मैचबॉक्स में हम फिल्म निर्माता के दृष्टिकोण का समर्थन करने में विश्वास करते हैं और वरुण ने एआईआर के साथ हमें गौरवान्वित किया है।”

ये फिल्म 90 के दशक के प्री-मोबाइल युग में सेट है, जहां 17 साल के विवेक को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी के लिए घर से दूर एक कोचिंग सेंटर भेजा दिया जाता है।

‘ऑल इंडिया रैंक’ के साथ वरुण ग्रोवर बतौर फीचर फिल्म डायरेक्टर अपना डेब्यू कर रहे हैं। *इस पर बात करते हुए उन्होंने कहा*, “जब हम 17 साल के होते हैं तो हम सभी संघर्ष करते हैं। हार्मोनल डिजायर्स को प्यार कहा जाता है, ‘महत्वाकांक्षा’ और ‘मीडियोक्रिटी’ के बीच लगातार फंसे रहना, पेरेंट्स का जनरेशन्ल ट्रॉमा – ये सब एक हॉरर कमेडी की तरह हमे घेरें रहता है। ‘ऑल इंडिया रैंक’ के साथ, मैं वास्तव में हमारे जीवन के उस फेज को कैप्चर करना चाहता हूं, जो खुशी और कन्फ्यूजन, प्यार और संदेह, आशा और सनक का फेज होता है।”

*उन्होंने आगे कहा*, “यह फिल्म 1990 के दशक के भारत में सेमी-ऑटोबायोग्राफिकल स्लाइस-ऑफ-लाइफ ड्रैमेडी के साथ-साथ जीवन का एक टाइम कैप्सूल है – अमेरिकी शैली के पूंजीवाद का भारत में प्रवेश करने का समय – एक नए कंज्यूमरिस्ट मिडिल क्लास को जन्म देना- जो बाजार की मजबूरियों के कारण उदार कलाओं पर एसटीईएम को महत्व देता है। विवेक, मेरे जैसा नायक, इन नई अवधारणाओं के साथ संघर्ष करता है जो व्यक्तिगत खुशी को ‘आपके द्वारा समाज में लाए जाने वाले मूल्य’ के नीचे रखते हैं।

कह सकते है मैचबॉक्स शॉट्स द्वारा निर्मीत उनकी अलगी पेशकश भी एक बेहतरीन फिल्म साबित होगी।


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