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(यात्रा) श्रीकृष्ण के चरण-चिन्ह हैं इस मंदिर में


  • दीपक दुआ

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक पत्रकार हैं। 1993 से फिल्मपत्रकारिता में सक्रिय। मिज़ाज से घुमक्कड़।सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपकफिल्म क्रिटिक्स गिल्डके सदस्य हैं और रेडियो टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

राजस्थान की राजधानी जयपुर से नाहरगढ़ के किले की तरफ जाएं तो किले से थोड़ा पहले एक बोर्ड लगा हुआ दिखता है जिस पर लिखा है-चरण मंदिर। लेकिन सामने वाली इमारत को देखिए तो लगता है कि कोई पुराना-सा महल है। अंदर जाइए तो कछवाहा शैली के किले की बनावट दिखती है। लेकिन इसी के भीतर है यह ‘चरण मंदिर’। नाहरगढ़ जाने वाले बहुत कम पर्यटक ही यहां रुकते हैं। ज्यादातर स्थानीय लोग या फिर उत्सुक सैलानी ही इसके भीतर जाते हैं। यहां लिखी कथा के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण महाराजा मान सिंह प्रथम ने करवाया था जिन्हें खुद भगवान श्रीकृष्ण ने स्वप्न में आकर इस जगह पर अपने और अपनी गायों के चरण-चिन्ह होने की बात बताई थी। तब राजा ने अपने सेवकों से इस जगह की खोज करवाई और अंबिका वन यानी आमेर पहाड़ी पर यह स्थान मिलने पर वह अपने पुरोहितों सहित यहां पहुंचे। पुरोहितों ने उन्हें बताया कि यह चिन्ह् द्वापर युग के समय के हैं और उन्हें श्रीमद्भागवत कथा के 10वें स्कंध के चौथे अध्याय में वर्णित विद्याधर (सुदर्शन) के उद्धार की कथा सुनाई।

उक्त कथा के अनुसार श्रीकृष्ण यहां एक बार अपने सखाओं, गायों और नंद बाबा के साथ आए थे। यहां रहने वाले एक अजगर ने जब नंद बाबा का पांव पकड़ लिया तो श्रीकृष्ण ने अपने पांव से उस अजगर को स्पर्श किया जिससे वह एक रूपवान पुरुष में बदल गया और उसने बताया कि वह इंद्र पुत्र विद्याधर है जिसे उसके मोहक रूप के कारण सुदर्शन भी कहते थे। एक बार उसने अंगिरा गौत्र के कुरूप ऋषियों की हंसी उड़ाई थी जिससे क्रोधित होकर ऋषियों ने उसे अजगर योनि में जाने का श्राप दे दिया। किवदंती है कि श्रीकृष्ण पांडवों के अज्ञातवास के दौरान भी यहां उनसे मिलने के लिए आया करते थे। यहां आने वाले श्रद्धालु अपनी श्रद्धा से यहां भंडारे आदि का आयोजन भी करते हैं।

साभार : cineyatra.com

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