नई दिल्ली : आदिवासी अवेयरनेस सोसायटी (आस) द्वारा वाईएमसीए परिसर, नई दिल्ली में आज एक दिवसीय जनजातीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह चर्चा आदिवासी जागरूकता: चेतना, एकता और कार्य पर केंद्रित थी। इसमे आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता पर गंभीर चर्चा हुई। समाज में उन्हें अधिक सम्मानजनक स्थान प्रदान करना, उनके लिए आरक्षण सुनिश्चित करना – रोजगार और शिक्षा एवं आदिवासियों के जल, जंगल और भूमि के अधिकारों की रक्षा करना था।
डॉ वर्जिनियस खाखा (पूर्व निदेशक- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस, गुवाहाटी), श्री सुरेंद्र कुमार सुमन (सचिव झारखंड भवन, नई दिल्ली), श्रीमती प्रवीण होरो सिंह (अतिरिक्त महानिदेशक, योजना और सांख्यिकी मंत्रालय), श्री बंधु तिर्की (पूर्व मंत्री व विधायक, मांडर, झारखंड), डॉ (श्रीमती) गोमती बोदरा (जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली), श्री आलोक मिच्यारी (जनजातीय नेता व सदस्य – निदेशक मंडल – नई दिल्ली वाईएमसीए), सुश्री सोमोदिनी टुडू लकड़ा, श्री राजकुमार नागवंशी (झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता), श्री बेलास तिर्की (झारखंड के युवा नेता), मशाल सोशल वेलफेयर सोसाइटी के श्री मोहन बड़ाइक और श्री गंगाराम गगराई (दिल्ली के आदिवासी नेता) आदि सभी आदिवासी समुदाय के लोग एक साथ आए और इस सम्मेलन के दौरान कई प्रासंगिक विषयों पर चर्चा की।
मुख्य वक्ता डॉ वर्जिनियस खाखा (समाजशास्त्री, लेखक व पूर्व निदेशक- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस, गुवाहाटी) ने अपने संबोधन में कहा कि आज सभी आदिवासियों को अपनी जाति नही बल्कि अपनी आदिवासी भाषा से जुड़ने की जरुरत है तभी हम अपने समुदाय को बचा सकते है और हमारी पहचान बनी रहेगी। जैसे देश के विभिन्न प्रदेशों के लोग भाषा के आधार पर ही जुड़े हुए है, बंगाली, उड़िया, पंजाबी, तमिल, तेलगु व अन्य लोग अपनी भाषा से ही जुड़े है तभी वो बंगाली, उड़िया, पंजाबी, तमिल, तेलगु व अन्य कहलाये जाते है। इसलिये हमे भी अपनी जनजाति आदिवासी भाषा से जुड़े रहना चाहिये। हमे अपने को आदिवासी होने पर गर्व होना चाहिये न कि हमे अपने आपको आदिवासी कहने पर शर्म।
हमारे आदर्श श्री बिरसा मुंडा जी ने सभी आदिवासी समुदाय के लिए आजीवन लड़ा। आदिवासी को धर्म व जाति से नही जोड़ना चाहिए। हमे आदिवासी समुदाय के सभी जातियों करिया, मुंडा, संथाल, मीणा, क्रिचिश्यन व अन्य किसी भी जाति के हो हम सभी आदिवासी समुदाय से जुड़े लोग है।
आज आदिवासी समुदाय के लिये सही कानून जैसे आरक्षण, शिक्षा, पॉलिसी बनाने व उसे लागू करने की जरूरत है और उन सभी गांव प्रदेशो में आदिवासी समुदाय से सभी लोगों तक पहुचाने की जरूरत है। सभी आदिवासीयों को उनके हक व अधिकार की जानकारी नही है हमे ये जानकारी उन तक पहुचाने की जरुरत है।
श्री बंधु तिर्की (पूर्व मंत्री व विधायक, मांडर, झारखंड) ने कहा कि आदिवासी इस देश का एक अहम हिस्सा है जिसे की नकारा नही जा सकता। उन्होंने आगे कहा कि भाषा के बिना आदिवासी समुदाय का कोई अस्तित्व नही है इसलिये हमे अपनी भाषा से जुड़े रहना चाहिये। जुबान, जंगल व जमीन ही आदिवासी की पहचान है। पूरे देश मे 32 तरह के आदिवासी जाति होने के बावजूद हम सभी आदिवासी समुदाय से जुड़े लोग है। हमे सिर्फ आदिवासी की पहचान बनाने की ही जरूरत है।आज अपने समुदाय से देश की राजधानी दिल्ली में भी एक अच्छे सांसद की जरूरत है ताकि आदिवासी समुदाय की बात भी उठाया जा सके।
झारखंड राज्य की स्थापना हम आदिवासी लोगों के लिये ही हुई और आज झारखंड को बचाने की जरूरत है, वहाँ भी हमारे बीच धर्म व जातियो में बांटने की कोशिश हो रही है। हमे एक होकर रहना है और अपने समुदाय को बचाने व अपने अधिकारों को जानने की जरूरत है। हमे इस तरह की चर्चा व गोष्ठी समय समय पर करते रहना चाहिए ताकि हमारे आदिवासी समुदाय से जुड़े लोगों को जागरूक किया जा सके।
पूरे दिल्ली और एनसीआर के विभिन्न आदिवासी समुदायों के बुद्धिजीवियों ने कार्यक्रम में सक्रिय भाग लिया। सरकारी, गैर-सरकारी और निजी संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया और अपने बहुमूल्य सुझाव दिए। इस संगोष्ठी का उद्देश्य भारत सरकार तक आदिवासी समुदाय की बात पहुचाना और आदिवासी समुदायों के कल्याण की ओर उनका ध्यान आकर्षित करना है, ताकि भविष्य में उन्हें वह लाभ एवं सम्मान मिले जिसके वे हकदार हैं।