आज भगतसिंह , सुखदेव और राजगुरु का शहादत दिवस है । उनकी स्मृति को लाल सलाम ! साथ में एक दस्तावेज़ी चिट्ठी भी । भगतसिंह ने इस चिट्ठी को साथी बटुकेश्वर दत्त के लिए तब लिखा था, जब ‘ लाहौर षड्यंत्र केस ‘ में उन्हें फांसी की सज़ा सुना दी गई थी ।
” प्रिय बटुक ,
दीर्घ काल तक हम लोगों का विचार प्रहसन चलने के बाद अब उस पर यवनिका पात हुआ । न्यायाधीशों ने सज़ाएं घोषित कर दी हैं और उन सज़ाओं की इत्तिला हमें भेज दी गई है । मुझे फांसी की सज़ा मिली है । तुम्हें मालूम है कि मैं लाहौर जेल की उन्हीं फांसी की कोठरियों में हूं , जहां चंद रोज़ पहले तुम मेरे साथ थे । इन फांसी की कोठरियों में कुल पैंतालीस मृत्युदंड प्राप्त बंदी हैं जो प्रति क्षण अपनी अंतिम घड़ी की प्रतीक्षा कर रहे हैं । वे अभागे बंदी फांसी के फंदे से छूट पाने के लिए दिन – रात भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं । उनमें से अधिकांश अपने कृत्य कर्म के लिए अत्यंत अनुतप्त हैं और इन अभागे बंदियों के बीच मैं ही एक ऐसा व्यक्ति हूं , भगवान के बदले अपने आदर्शों में ही जिसकी अविचल आस्था है एवं जिस आस्था के लिए मैं मृत्यु का आलिंगन करने जा रहा हूं । मैं इसके लिए संतुष्ट हूं । तुमसे मेरा बिछोह अत्यंत ही पीड़ादायक है , लेकिन इससे कुछ विशेष उद्देश्यों की पूर्ति होगी । मैं फांसी के तख्ते पर अपना प्राण विसर्जित कर दुनिया को दिखाऊंगा कि क्रांतिकारी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए खुशी – खुशी आत्म बलिदान कर सकता है । मैं तो मर जाऊंगा लेकिन तुम आजीवन कारावास की सज़ा भुगतने के लिए जीवित रहोगे , और मेरा दृढ़ विश्वास है कि तुम यह सिद्ध कर सकोगे कि विप्लवी अपने उद्देश्यों के लिए आजीवन तिल – तिल कर यंत्रणाएं सहन कर सकता है । मृत्युदण्ड पाने से तुम बचे हो और मिलने वाली यंत्रणाओं को सहन करते हुए दिखा सकोगे कि फांसी का फंदा , जिसके आलिंगन के लिए मैं तैयार बैठा हूं , यंत्रणाओं से बच निकलने का एक उपाय नहीं है । जीवित रहकर विप्लवी जीवन – भर मुसीबतें झेलने की दृढ़ता रखते हैं ।
तुम्हारा ,
भगतसिंह ।”